भारत के आधुनिक शिक्षा की समस्याओं पर चर्चा कीजिये
भारत के आधुनिक शिक्षा की समस्याएँ
वास्तव में आधुनिक शिक्षा प्रणाली से कई समस्याएं सामने आती हैं आज हम देखे हैं तो शिक्षा का मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना ही होता है वह पैसा कैसे भी आए उससे ज्यादातर ना तो किसी शिक्षक को मतलब होता है ना किसी माता-पिता को मतलब होता है.आज हमारे देश में इसी वजह से भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं लेकिन अगर एक शिक्षक शुरू से ही आधुनिक शिक्षा पर ज्यादा जोर न देकर एक इंसान को नैतिक शिक्षा और सत्य, ईमानदारी का ज्ञान कराएं तो वास्तव में देश की तकदीर बदल सकती है |
आज हम देखें तो हमारे एक शहर में ही कई स्कूल होते हैं कुछ प्राइवेट तो कुछ सरकारी स्कूल भी होते हैं बच्चों को ले जाने वाली कई बसे होती हैं इसके अलावा आज हम देखें तो बहुत सारे तरह-तरह के वाहन हैं जिनके जरिए हम यात्रा कर सकते हैं बच्चे शुरू से ही स्कूल की बसों में या अन्य वाहनों में स्कूल जाता है और लोग कहीं पर भी यात्रा करने के लिए बसों,कारो,मोटर वाहनों का उपयोग करते है इससे वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा होता है|
आधुनिक शिक्षा प्रणाली में मशीनरी ज्ञान से ज्यादा एक इंसान को इंसान बनाने कि,उसको सत्य और ईमानदारी का पाठ पढ़ाने की, उसे नैतिक शिक्षा का ज्ञान कराने की और अपनी प्रकृति को स्वच्छ और प्रदूषण रहित बनाने की शिक्षा को दिया दी जाए और उसको फॉलो किया जाए तो वास्तव में हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित होगा और हम देश को आगे बढ़ाने में भी मदद कर सकेंगे|
सरकारी स्कूल और पब्लिक स्कूलों में कही भी समानता नही दिखायी देती । इन संस्थाओं में अमीरी और गरीबी के बीच की खाई स्पष्ट देखी जा सकती है । प्राइवेट स्कूलों की फीस इतनी अधिक हो गयी है कि आम आदमी इससे कोसो दूर होता जा रहा है । दूसरी तरफ भ्रष्टाचार के चलते सरकारी स्कूलों का विकास नही हो पा रहा है । अध्यापको की कोठियों और बैंक बैलेंस से इनको देखा जा सकता है । शिक्षा संस्थान आज व्यवसायिक केंद्र बनकर रह गए है ।
स्वार्थ और दिखावे में उलझ आज का छात्र पर्यावरण जैसे मुद्दे पर मूकदर्शक बना रहता है । प्रकृति से लगाव खत्म होता जा रहा है।
इंजिनियरिंग ,मेडिकल, जैसे संस्थानों में शोषण,आत्महत्या और बलात्कार जैसे वारदातो की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है । त्याग ,तपस्या ,आध्यात्मिक मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है। स्पष्ट है कि दर्शनशास्त्र ,साहित्य ,संस्कृत और नैतिकशास्त्र जैसे विषयो के प्रति हीन दृष्टिकोण और व्यवहारिक स्तर में चलन का ना हो पाना । इन विषयों को सरकार द्वारा प्रोत्साहित करके ही इन समस्याओ को दूर किया जा सकता है।
आज पाश्चात्य शिक्षा का अंधानुकरण हो रहा है ,वाहय चमक दमक के सामने हमारी संस्कृति फ़ीकी नजर आती है । जातिवाद के बंधन ने शिक्षा को भी नही छोड़ा है । आरक्षण जैसे मुद्दे फिर हावी होने लगे है । वोट के खातिर नेताओं को ऐसे मुद्दे उठाने में समय नही लगता है । फिर उसकी आग में सभी जलते है । इस मुद्दे पर सरकार समय समय पर आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत करती दिखायी तो देती है, लेकिन आज तक इसका हल नही निकल पाया ।
कई राज्यो में तो नकल आम बात हो गयी है। जहाँ पेरेंट्स स्वयं बच्चों को नकल करवाने के लिए प्रेरित करते है। अनुशासन के अभाव में सामाजिक ढाचा जैसे चरमरा गया है । यदि इनको सख्ती से रोका न गया तो समस्या और गंभीर हो सकती है ।
बच्चो को मनोवैजानिक द्रष्टि से उनका आकलन और विश्लेषण करके उनके क्षेत्र का निर्धारण किया जा सकता है। जिस भी विषयो में बच्चो की रूचि हो ,उस पर उसे पूर्ण निर्णय लेने दे साथ ही घर के माहौल को बिगड़ने न दे। क्योकि पति पत्नी के झगड़े से बच्चो पर इसका बुरा असर पड़ता है । आज के इस एनीमेशन और स्मार्ट एजुकेशन के दौर में योग और अनुशासन के समन्वय से ही शिक्षा के सही अर्थो को पहचाना जा सकता है। अपनी शिक्षा को आध्यत्मिक और अपनी संस्कृति के साथ जोड़कर ही आधुनिक शिक्षा का विकास किया जा सकता है ।
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