प्रकृतिवाद के रूप में शिक्षा
प्रकृतिवाद एक दार्शनिक विचारधारा है जो पदार्थ को आधार एवं यथार्थ मानती है तथा जगत, जीव और मनुष्य सभी उसी से निर्मित है। इस विचारधारा के प्रमुख प्रवर्तक के रूप में सामान्यतः रूसो का ही नाम लिया जाता है। रूसो ने यद्यपि प्रकृतिवाद के नारे को जोरदार ढंग से ऊँचा किया किन्तु वह भी प्लेटो जैसे विचारवादी दार्शनिक से प्रभावित था। उसके विचार प्लेटों से प्रभावित थे। इसलिए रूसो की प्रकृतिवाद का स्वरूप आदर्शवादी उद्देश्यों की पृष्ठभूमि पर निर्मित प्रतीत होता है। ब्रुबेकर का ऐसा विचार है कि रूसो एक रोमांटिक प्रकृतिवादी था। बालक की रूचि तथा योग्यता, बन्धन से दूर, प्राकृतिक स्थल पर शिक्षा की व्यवस्था इत्यादि बातों के आधार पर हम रूसों को प्रकृतिवादी नहीं कह सकते हैं। क्योंकि यदि मात्र बालक की स्वाभाविक रूचि पर बल देने तथा प्रकृति से प्रेम के बल पर यदि रूसो को प्रकृतिवादी कहा जा सकता है तो हमें प्लेटो को भी इसी श्रेणी में सम्मिलित करना होगा। रस्क, डोनेल्ड बटलर इत्यादि दार्शनिक मानते हैं कि हरबर्ट स्पेन्सर वास्तव में प्रकृतिवादी हैं। बेकन एवं कमेनियस भी प्रकृतिवादी विचारधारा से जुड़े प्रतीत होते हैं। किन्तु प्रकृतिवाद को अपनी चरम सीमा पर पहुँचाने का श्रेय स्पेन्सर एवं रूसों को ही दिया जा सकता है। रूसों के सम्बन्ध में आश्चर्य व्यक्त करते हुए राबर्ट हरबार्ट ने लिखा है कि रूसो जैसे पतित व्यक्ति का इतना प्रभाव आश्चर्य जनक है। चूँकि दूषित समाज का रूसों भी एक अंग था, इसलिए उसका नैतिक पतन होना स्वाभाविक था। अतः रूसो ने तत्कालीन समाज के विषय में सार्वभौमिक कथन कह डाला, - ‘मनुष्य की संस्थायें विरोधी तत्वों एवं भूलों का पिण्ड है। तथा समाज द्वारा स्थापित नियमों के विरूद्ध कार्य करने पर सही कार्य संभव हो सकेगा।’ रूसों ने ‘प्रकृति की ओर लौटो’ का जो नारा दिया उससे यही संकेत निकलता है कि वह छात्रों को दूषित समाज से दूर गाँव की प्राकृतिक छत्र छाया में ले जाना चाहता था। वास्तव में यह ‘वाद’ १८वीं शताब्दी की यूरोप की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं शैक्षिक क्षेत्र में होने वाली ‘क्रान्ति’ के परिणाम स्वरूप हुआ। यह क्रान्ति विशेष रूप से तत्कालीन रूढ़िवादिता एवं अंध विश्वासों से ग्रसित धार्मिक संस्थाओं के विरूद्ध हुई थी।
प्रकृतिवादी शिक्षा में शिक्षक को गौण स्थान प्राप्त है। प्रकृतिवादी विचारक प्रकृति को ही वास्तविक शिक्षिका मानते हैं। उनके विचार से बालक को समाज से दूर रखकर प्राकृतिक वातावरण में शिक्षा प्राप्त करने का अवसर देना चाहिए। रूसों के अनुसार शिक्षक पर समाज के कुसंस्कारों का प्रभाव इतना पड़ गया होता है कि वह बालकों को सद्गुणी बनाने का प्रयास भले ही कर लें, वह उन्हें सदगुणी बना नहीं सकता क्योंकि वह स्वयं सद्गुणी नहीं है। इसलिए रूसों बालक की आरम्भिक शिक्षा में शिक्षक को कोई स्थान नहीं देना चाहते। अन्य प्रकृतिवादी रूसो के अतिरेक को स्वीकार नहीं करते। वे बालकों की शिक्षा में शिक्षक की भूमिका मात्र सहायक एवं पथ प्रदर्शक के रूप में मानते हैं। इसलिए शिक्षक को मनोविज्ञान का ज्ञाता होना चाहिये। बालक की मनोकामनाएं, आवश्यकताएं रूचियाँ तथा उनके मानसिक विकास का उसे परिज्ञान होना चाहिए। शिक्षक के लिए बालक की स्वतः आत्मस्फूर्त क्रियाओं का जानना आवश्यक है। क्योंकि छात्र इन स्वतः शक्तियों द्वारा अपनी शिक्षा स्वयं करता है, शिक्षक तो केवल उचित परिस्थितियों का संयोजन मात्र करता है। यदि सीखने का परिणाम सुखद होता है तो बालक सीखने में आनन्द लेता है। तथा उक्त शैक्षिक अनुभव की बार बार आवृत्ति करता है। शिक्षक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह बालक के लिए अनुकूलित वातावरण तैयार करे।
यदि हम शिक्षा के सन्दर्भ में प्रकृतिवाद का मूल्यांकन करें तो हमें उसमें अनेक गुण नजर आते हैं -
- (१) बालक का शिक्षा में प्रमुख स्थान प्रकृतिवाद की विशेषता है। एक समय था जब शिक्षा पूर्णतया आदर्शवादी थी और शिक्षक, पाठ्यक्रम, चरित्र इत्यादि का वर्चस्व था तथा बालक का स्थान गौण था किन्तु प्रकृतिवाद के कारण बालक एवं उसकी रूचियों प्रवृत्तियों एवं आवश्यकताओं को केन्द्रीय स्थान दिया जाता है जिसके कारण ‘बाल केन्द्रित शिक्षा’ अस्तित्व में आयी।
- (२) ‘बाल मनोविज्ञान’ के अध्ययन की प्रेरणा भी इसी विचारधारा ने दी। आज शिक्षा के क्षेत्र में जो मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति का प्रचलन है। यह प्रकृतिवाद के प्रभाव का ही परिणाम है। मनोविज्ञान की एक विशेष शाखा ‘मस्तिष्क विश्लेषण’ को तो विशेष प्रोत्साहन मिला। लिंग भेद की ओर इस मनोविज्ञान की विशेष देन है। इसके प्रति इसने एक स्वस्थ विचारधारा को जन्म दिया।
- (३) प्रकृतिवादी विचारधारा ने शिक्षण विधि में शब्दों की अपेक्षा अनुभवों पर अधिक बल दिया। उनका विचार है कि केवल शब्द शिक्षा के लिए आवश्यक गुण नहीं है। अपितु अनुभव भी आवश्यक है। इसलिए इसने शिक्षण के अनेक नवीन सिद्धान्तों एवं विधियों को जन्म दिया। ‘करके सीखना’, निरीक्षण एवं अनुभव द्वारा सीखना, खेल द्वारा सीखना, इत्यादि नवीन शिक्षण सिद्धान्त तथा ‘ह्यूरिस्टिक पद्धति’, ‘डाल्टन पद्धति’, मान्टेसरी पद्धति इत्यादि नवीन शिक्षण विधियाँ प्रकृतिवाद की ही देन है।
- (४) प्रकृतिवाद का एक अन्य योगदान यह है कि इसने शिक्षा मनोविज्ञान एवं समाजशास्त्र का प्रकृतिवादी स्वरूप एवं आधार प्रदान किया जिसके परिणाम स्वरूप आधुनिक शिक्षा मनोविज्ञान तथा समाजशास्त्र का अस्तित्व आया।
- (५) शिक्षा के सन्दर्भ में प्रकृतिवाद का सबसे उल्लेखनीय योगदान शिक्षा सम्बन्धी विभिन्न परम्परावादी धारणाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन होना है। प्रकृतिवादियों के ‘प्रकृति की ओर लौटो’ के नारे ने हमारी सभ्यता एवं संस्कृति की परम्परात्मक धारणा में क्रान्तिकारी परिवर्तन उत्पन्न कर दिया जिसके परिणामस्वरूप समाज एवं राज्य दर्शन के रूप में लोकतन्त्र का जन्म हुआ। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि प्रकृतिवाद, आदर्शवाद के बिल्कुल विपरीत विचारधारा है जो कि इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्ष होने वाले भौतिक प्राकृतिक पदार्थ जगत को सत्य वास्तविकता मानती है।
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